Ford Company को भारत से पंगा लेना क्यों पड़ा भारी?
फोर्ड कंपनी को भारत से पंगा लेना पड़ गया महंगा, भारत को कंगाल समझ कर भागी Ford Company, अब भारत के पीछे-पीछे दौड़ रही है, जी हां दोस्तों!! एक तरफ जहां दुनिया भर की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में जड़े जमाने में लगी हुई हैं वहीं दूसरी तरफ Ford Company ने भारत को छोड़ने की सबसे बड़ी गलती कर दी, जिसका पछतावा हुआ आज उसे हो रहा है। दोस्तों भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ने करवट बदली और आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल मार्केट बन गया है, लेकिन ये पूरा मामला क्या है?? और क्यों Ford Company को भारत छोड़कर जाना पड़ा और वो दोबारा भारत आने पर मजबूर है, आज कि इस लेख में एक-एक बात से हम पर्दा उठाने वाले हैं, बस आप हमारे साथ बने रहिए इस लेख में ।
दोस्तों ये तो आप भी जानते हैं कि, हमारे भारत में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री बूम पर है जहां लोग बढ़-चढ़कर गाड़ियां खरीद रहे हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब भारत में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की हालत खराब थी, जब भारत एक डेवलपिंग देश बनने की रेस में लगा था तो ऐसी बहुत सी चीज हुई जिसने दूसरे देशों के मन में भारत का नजरिया बदल दिया, लोगों को लगने लगा कि भारत एक गरीब देश है लोगों की कमाई कम है और लोग यहां पर गाड़ियां खरीदना अफोर्ड नहीं कर सकते, इसी चीज को सोचकर भारतीय मार्केट में कई सारे बदलाव हुएं और उसी में से एक सबसे बड़ा बदलाव था Ford Company का भारत से जाना, जिससे भारत को एक बड़ा झटका लगा, लेकिन आज बाजी पलट चुकी हैं। तभी तो तेजी से बढ़ रहे भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट के बढ़ रहे लालच से Ford भी नहीं बच पाई और अब उसने अपनी बची हुई प्रोडक्शन यूनिट को न बेचने का फैसला ले लिया है।
क्या कारण है Ford Company का भारत में वापस आना?
असल में दोस्तों इससे पहले Tata Company ने फोर्ड की गुजरात बेस्ड प्रोडक्शन यूनिट को 725 करोड़ में एक्वायर कर लिया था। Tata का प्लान इस यूनिट में अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के प्रोडक्शन को बढ़ाने का था। अब बची हुई फोर्ड की तमिलनाडु बेस्ड यूनिट को खरीदने के लिए कई Company’s ने अपनी रुचि दिखाई, यहां तक की चीन की मॉरिस गैरेज के अलावा ताईवान की बेलफास्ट और भारत की Mahindra जैसी कई सारी कंपनियां Ford से उसकी प्रोडक्शन यूनिट को खरीदना चाहती थी, लेकिन कोई भी नतीजा नहीं निकल पाया और फिर अंत में जब भारत की JSW ने इस नई यूनिट को खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखाई तब जाकर Ford Company की अकल ठिकाने आई और उसे समझ में आ गया कि वो कितनी बड़ी भूल कर बैठी है। और अब Ford ने ऑफिशियल तौर पर इस बात की अनाउंसमेंट कर दी है कि, वो इस यूनिट को नहीं बेचने वाली है, जिसका सीधे तौर पर देखा जाए तो एक ही कारण बचता है और वो ये की Ford दोबारा से भारतीय मार्केट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के प्रोडक्शन में कूद सकती है।
दोस्तों तमिलनाडु की जिस यूनिट को बेचने से फोर्ड इंकार कर रही है, उस यूनिट में फोर्ड अपनी पैसेंजर गाड़ियों के अलावा अपने इंजन तक मैन्युफैक्चर करती थी, लेकिन JSW ने हाल ही में चीनी कंपनी SIC की भारतीय यूनिट का 35% शेयर खरीद लिया था और JSW खुद एक इलेक्ट्रिक कार के प्रोडक्शन का मन बना चुकी है, यही कारण है कि वियतनाम की “वी.एन फास्ट” के अलावा JSW खुद एक प्रोडक्शन यूनिट की तलाश में है। वैसे आपको बता दें कि फोर्ड कंपनी ने इससे पहले भी यानी की 2022 में भारतीय बाजार में लौटने का मन बनाया था, पब्लिक डोमेन में ये खबर सामने आई थी कि, फोर्ड इलेक्ट्रिक गाड़ियों के साथ भारत में कम-बैक करेगी लेकिन फिर दोबारा से Ford Company अपनी बात से पलट गई और उसने अपनी बची-खुची प्रोडक्शन यूनिट को बेचने का फैसला कर लिया था।
इसीलिए जैसे ही यह खबर भारतीय मार्केट में पहुंची अलग-अलग कंपनियों ने उसे खरीदने का दावा करना शुरू कर दिया, पर अब फोर्ड अपना मन बदल चुकी है, दोस्तों इन सारी चीजों को देखकर एक बात तो पक्की है कि, भारतीय मार्केट को लेकर Ford Company पूरी तरह से कॉन्फिडेंट नहीं है यही कारण है कि 2 साल बाद भी अमेरिका की ये कंपनी फैसला नहीं ले पा रही है कि, भारतीय मार्केट में टिकना चाहिए या फिर नहीं।
क्यों कोई कंपनी आज भी पछता रही भारतीय मार्केट में न होने पर ?
ऐसे में एक सवाल ये खड़ा होता है कि भारतीय मार्केट में तहलका मचा चुकी फोर्ड कंपनी ने क्यों भारत से जाने का फैसला किया? तो दोस्तों! जानकारो का कहना है कि एक टाइम बाद फोर्ड कंपनी ने अपने कस्टमर्स को बेहतर क्वालिटी और फीचर्स देना बंद कर दिया था और उस दौरान मार्केट में हुंडई, टाटा और मारुति सुजुकी ने कम कीमतों में बेहतर फीचर्स वाली गाड़ियां बनाकर कस्टमर्स का दिल खुश कर दिया था, जिसकी वजह से ford india के कस्टमर्स का बेस टूट गया और फोर्ड कंपनी की सेल्स लगातार गिरती चली गई। इसीलिए उसने भारत से जाने का फैसला कर लिया था, लेकिन अभी फिलहाल के लिए तो फोर्ड इस प्लांट को अपने पास ही रखने वाली है, लेकिन अभी पक्के तौर पर कुछ भी कह पाना मुश्किल है कि Ford कब से भारत में अपना प्रोडक्शन शुरू करेगी?…. यहां तक की ऐसा भी माना जा रहा है कि, Ford Company आगे चलकर इस यूनिट को एक्सपोर्ट मार्केट के लिए भी इस्तेमाल कर सकती है, ऐसी मार्केट जहां आज भी डीजल और पेट्रोल गाडियां ज्यादा इस्तेमाल में लाई जाती हैं।
ऐसे में अगर Ford ने अपनी पिछली गलतियों से सीखा होगा तो इस बार उसे अपनी गलतियां सुधारने का मौका मिला है क्योंकि भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में जो बूम आज आया है वो आज से पहले कभी नहीं आया था। फोर्ड से पहले अमेरिकन कंपनी General Motors ने भी 2017 में भारतीय मार्केट को टाटा बाय-बाय कह दिया था, जिसे लेकर यह Company आज बहुत पछता रही है।
क्या रशियन कंपनियां भी करेगी भारत में निवेश?
दोस्तों ये तो हुई अमेरिकन कंपनियों की बात, लेकिन आने वाले समय में अगर रशियन कंपनियां भारत में निवेश करती दिखें तो हैरान मत होइएगा। क्योंकि रूस का एक बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट प्लान शुरू हो चुका है जिसके चलते भारत में अब तक की सबसे बड़ी पेट्रोकेमिकल प्लांट सेटअप होने वाली है भारत और रूस का ये जॉइंट वेंचर यूरोपीयन मार्केट को अंदर तक हिला देगा क्योंकि, ये एक ऐसा मार्केट है जहां की पेट्रोल केमिकल इंडस्ट्री को खास तौर पर ऑयल प्रोड्यूजिंग देश और चीन मिलकर चलाते हैं। लेकिन अब भारत में इन सभी को मुंहतोड़ जवाब देने की ठान ली है और सीधा रशिया के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है।
दोस्तों आने वाले समय में ये इंडो-रशियन ज्वाइंट वेंचर पूरे मार्केट में उथल-पुथल मचाने वाला है। अगर आज के समय में देखा जाए तो पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री को खासतौर पर दो केमिकल्स डोमिनेट करते हैं, जिसमें से एक है Polyethylene और दूसरा है Polypropylene इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि, जितने भी पेट्रोल केमिकल्स का प्रोडक्शन दुनिया भर में होता है, उनमें से 7% पेट्रोकेमिकल्स पॉलीएथिलीन और पॉलिप्रोपिलीन होते हैं, ये वही केमिकल्स हैं जिनसे प्लास्टिक पॉलिथीन बनकर तैयार होती है, इन दोनों केमिकल्स का प्रोडक्शन दुनिया भर में इस हद तक हो चुका है की डिमांड से ज्यादा सप्लाई खड़ी हो चुकी है और यही वजह है कि इन दोनों केमिकल्स का प्रॉफिट मार्जिन आज के समय में काफी कम होता जा रहा है। दोस्तों अगर हम यूरोपियन मार्केट की पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री को देखें तो उसे चीन और ऑयल प्रोड्यूजिंग देश डोमिनेट कर रहे हैं। लेकिन अब कहानी में बहुत बड़ा बदलाव आने वाला है। जहां रूस और भारत हाथ मिलाकर इसी डोमिनेंस को खत्म करना चाहते हैं।
खास खबर ये है कि, इंडो-रशियन कंपनी और न्यारा एनर्जी साल 2024 के पहले क्वार्टर से ही साढ़े चार लाख टन कैपेसिटी की पॉलिप्रोपिलीन प्लांट ऑपरेशन करने जा रही है, जिसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि, पॉलिप्रोपिलीन की ओवर सप्लाई को ये और इन्वेंटरी से भर देगी, जिससे केमिकल्स के दाम और नीचे आ जाएंगे अब क्योंकि, भारत में इसका ओवर प्रोडक्शन शुरू हो जाएगा, जिसकी वजह से भारत और रूस की ये सांठ-गांठ चीनी सप्लायर्स को कड़ी टक्कर दे सकेगी हालांकि, इसका फायदा ऑयल प्रोड्यूजिंग देश को भी होगा जो इस केमिकल के लिए क्रूड ऑयल सप्लाई करते हैं, एक डाटा के अनुसार साल 2030 तक पूरी दुनिया में 427 मिलियन टाइम पॉलिप्रोपिलीन की डिमांड होगी यानी की डिमांड से साथ मिलियन टन ज्यादा पॉलिप्रोपिलीन का प्रोडक्शन दुनिया भर में होगा।
दोस्तों न्यारा एनर्जी का ये प्लांट गुजरात में सेटअप होगा। व भी किसी ऐसी-वैसी जगह पर नहीं बल्कि गुजरात के वडीनार में, ये वही जगह है जहां भारत की ज्यादातर क्रूड ऑयल रिफायनिंग होती है, जिन लोगों को नहीं पता है उन्हें बता दें कि भारत ने 250 मिलियन मेट्रिक टन से ज्यादा क्रूड ऑयल की रिफायनिंग कैपेसिटी तैयार कर रखी है यही वजह है कि पूरे एशिया में रिफायनिंग के मामले में भारत दूसरे नंबर पर आता है और सबसे इंटरेस्टिंग बात तो ये है कि जिसके इस्तेमाल से प्लास्टिक बनता है यानी कि पॉलिप्रोपिलीन भारत से कई जगहों पर जाता है जिसमें सबसे ज्यादा सप्लाई बांग्लादेश में होती है।
क्या भारत में भी मिल सकती है Tesla जैसी फीचर वाली गाड़ी कम कीमत में आईये जाने।
न्यारा एनर्जी के अलावा HPCL कंपनी भी पंजाब में एक पेट्रोकेमिकल प्लांट लगाने का विचार कर रही है और इस यूनिट में हर साल करीब एक मिलियन तन पाॅलीएथिलीन का प्रोडक्शन होगा, HPCL इस यूनिट को मित्तल इंडस्ट्री के साथ मिलकर स्थापित करेगी और इस यूनिट को भी साल 2024 के मिड से ऑपरेशनल कर दिया जाएगा यानी कि इसमें काम शुरू हो जाएगा। देखा जाए तो सरकार जिस हिसाब से हमें ये वादा कर रही है कि आने वाले समय में पेट्रोल सस्ता होगा वो वादा पूरा हो सकता है क्योंकि उसके लिए अलग-अलग कंपनियां अपने-अपने स्तर में मेहनत कर रही है ताकि न केवल पेट्रोल के दामों को सस्ता किया जा सके बल्कि, गाड़ियों को चलाने के लिए दूसरे रिसोर्सेज को भी मजबूत किया जाए और इसी वजह से इलेक्ट्रिक गाड़ियों का जो प्रोडक्शन है वो भारत में बढ़ता चला जा रहा है। इन्हीं सब को लेकर कई सारी विदेशी कंपनियां परेशान हैं, वो ये समझ नहीं पा रही है कि, भारत की मार्केट में किस तरह से पैर जमाएं जाएं।
एक तरफ तो भारत की टाटा कंपनी पहले से ही भारत के लोगों के हिसाब से अलग-अलग तरह की गाड़ियां बना रही है और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को भी सस्ते दामों में बेचने का विचार कर रही है ताकि, टेस्ला जैसी महंगी गाड़ियों के फीचर्स लोगों को सस्ती गाड़ियों में मिल सकें। वहीं दूसरी तरफ फोर्ड जैसी कंपनी भी भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में वापस से कदम रखने की तैयारी कर रही है और भारत की सरकार पेट्रोल के दामों को सस्ता करने के लिए तो हाथ पैर मार ही रही है यानी की हर तरफ से भारत को ही फायदा होने वाला है। जहां लोगों को सस्ते दामों में बेहतर गाड़ियां भी मिलेंगे और विदेशी इन्वेस्टर्स की वजह से भारत की इकोनॉमी को भी फायदा मिलेगा। पर दोस्तों अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है आने वाले समय में भारत हर एक इंडस्ट्री में अपनी डोमिनेंस दिखाता हुआ नजर आएगा।
वैसे आपका भारत की बढ़ती इकोनॉमी के बारे में क्या कहना है?? कमेंट में जरूर बताइएगा धन्यवाद।