क्या ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडिया की आजादी छीन सकती है?
आखिर क्यों बीजेपी की प्रवक्ता ने कहा कि भारत आजाद नहीं है, अंग्रेज वापस भारत पर हुकूमत करने आएंगे!….. दोस्तों हर साल 15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर झंडा फहराकर भारत की आजादी का जश्न मनाते हैं, लेकिन उसके बावजूद भी कई सारे सवाल लोगों के जहन में आते हैं जैसे कि, कुछ लोगों का कहना है कि भारत 15 अगस्त को कैसे आजाद हो सकता है? 1950 तक तो ब्रिटिश सरकार का डोमिनेंस चल रहा था और अगर हमें आजादी मिली होती तो हमने अंग्रेजों को बैंड-बाजे के साथ क्यों विदा किया हमें तो उन्हें मार कर भगाना चाहिए था और क्यों आजादी के बावजूद लॉर्ड माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाया गया और सबसे ज्यादा हैरानी तो तब होती है जब लोग ये कहते हैं कि भारत को आजादी मिली नहीं है बल्कि लीस पर ली गई है और 99 सालों बाद हम वापस अंग्रेजों के गुलाम हो जाएंगे तो क्या ये सच में होगा?…. क्या भारत को वापस अंग्रेजों की गुलामी करनी पड़ेगी? आज की इस वीडियो में हम आपको सारी सच्चाई बताने वाले हैं बस हमारे साथ बने रहिएगा इस रिपोर्ट मे।
इंडिया की आजादी छीन सकती है मुद्दे की शुरुवात कब हुई ?
दोस्तों इन सब की शुरुआत तब हुई जब कुछ दिनों पहले बीजेपी की प्रवक्ता रुचि पाठक का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वो कहती है कि भारत पूरी तरह से आजाद नहीं है बल्कि, नेहरू ने लिखित समझौता करके ब्रिटिश क्राउन से 99 सालों के पट्टे पर भारत को आजादी दिलाई है। इस बात पर कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने इनका काफी मजाक उड़ाया।
अब कांग्रेस के प्रवक्ता बीजेपी की प्रवक्ता रुचि के बारे में कुछ भी कहें, लेकिन हमें उनकी कहीं बात की जांच पड़ताल जरूर करनी चाहिए, जिसके लिए हमें साल 1947 में जाना होगा क्योंकि, ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर Clement Attlee चाहते थे कि लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का नया Viceroy बनाकर भेजा जाए ताकि भारत में चल रहे ट्रांसफर ऑफ पावर के मुद्दे को आसानी से सुलझाया जा सके, क्योंकि भारत में खुद का एक स्टेबल डेमोक्रेटिक सिस्टम होना बहुत जरूरी था और फिर काफी लंबे चौड़े बात विवाद के बाद ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर एटली ने ये घोषणा करवा दी की ब्रिटेन गवर्नमेंट जून 1948 से पहले भारत को पूर्ण स्वराज का अधिकार दे देगी।
लेकिन माउंटबेटन को ये बहुत अच्छे से पता था कि, ये सब कुछ आसान नहीं होने वाला है। इसलिए माउंटबेटन अपने चचेरे भाई जॉर्ज सिक्स से मिलने गए, जिन्होंने माउंटबेटन को सलाह देते हुए कहा कि अभी भारत में ऐसा माहौल बना हुआ है कि, कांग्रेस का कोई भी लीडर यह नहीं चाहता कि भारत कॉमनवेल्थ का हिस्सा बना रहे इसलिए तुम्हें ये कोशिश करनी है कि भारत चाहे एक जुट रहे या फिर उसका बटवारा करना पड़े लेकिन भारत कॉमनवेल्थ का हिस्सा बना रहना चाहिए।
आजाद भारत को कैसा रंग रूप देना हैं इसकी जिम्मेदारी किसकी थी ?
यानी कि आजाद भारत को कैसा रंग रूप देना है इसकी पूरी जिम्मेदारी माउंटबेटन पर थी। इसीलिए भारत पहुंचने के बाद माउंटबेटन ने सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात करी, दोनों एक दूसरे को पहले से ही जानते थे, ऐसे में नहरू ये चाहते थे कि माउंटबेटन उनके साथ मिलकर काम करें क्योंकि, भारत की सभी रियासतों के दावेदार ब्रिटिश शासन के करीब थे, लेकिन जब माउंटबेटन ने भारत के बंटवारे की बात करी तो नेहरू जी ने इस मामले में गांधी जी से बात करने की सलाह दी और फिर माउंटबेटन ने गांधी जी से मुलाकात करी, गांधी जी शुरुआत से ही बंटवारे के विरोधी रहे हैं, ऐसे में माउंटबेटन के मुंह से खुद बंटवारे की बात सुनकर गांधी जी का दिमाग खराब हो गया, यहां तक की उन्होंने गुस्से में ये तक कह दिया कि आप हमें हमारे हाल पर छोड़ दो हमें आपकी कोई जरूरत नहीं।
इसी बीच माउंटबेटन को कांग्रेस के सबसे बड़े नेता सरदार वल्लभभाई पटेल का एक खत मिला, जिसमें उन्होंने किसी अपॉइंटमेंट के बारे में लिखा था, उस खत में लिखी हुई सख्त भाषा माउंटबेटन को बिल्कुल पसंद नहीं आई, इसलिए उन्होंने वल्लभभाई पटेल से ये खत वापस लेने के लिए कहा लेकिन पटेल नहीं माने तो फिर माउंटबेटन ने धमकी देते हुए उनसे कहा था कि, आप मुझे समझते क्या है? अगर आपको सब कुछ अपने हिसाब से ही करना है तो फिर आप ही कर लो, मैं अभी वापस चला जाता हूं।
माउंटबेटन की इस बात को सुनकर वल्लभभाई पटेल ने अपना खत वापस लिया, यहां अकड़ दोनों में ही थी लेकिन दोनों समझदार थे, इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता निकाला। हालांकि बंटवारे की बात से सरदार वल्लभभाई पटेल भी सहमत नहीं थे, ऐसे में भारत के तीन बड़े नेता जब बंटवारे को लेकर सहमति नहीं दिखा रहे थे, तो माउंटबेटन मोहम्मद अली जिन्ना के पास गए और उन्हें बताया कि कांग्रेस का कोई भी लीडर देश के बंटवारे को लेकर सहमत नहीं है। माउंटबेटन ने जिन्ना से ये भी कहा कि लगता है भारत में बंटवारा किए बिना ही इंडियन गवर्नमेंट को एस्टेब्लिश करना होगा, पर जिन्ना को ये बात कैसे पसंद आ सकती थी? इसलिए उन्होंने भड़क कर कहा कि, मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा, मुझे बस अपना एक अलग देश चाहिए, जिसके लिए भारत का बंटवारा होना बहुत जरूरी है।
भारत मे हिंदू मुस्लिम का साथ मिलकर रहना आसान क्यों नहीं ?
मोहम्मद अली जिन्ना की इस बात को सुनकर माउंटबेटन समझ गए थे कि, अब भारत में हिंदू मुस्लिम का साथ मिलकर रहना आसान नहीं होगा हालांकि, पूरे हालात को अच्छी तरीके से समझने के लिए माउंटबेटन ने पंजाब का दौरा किया, वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि लोग हर दूसरे दिन दंगे कर रहे हैं, एक दूसरे के जान के प्यासे हो गए हैं और फिर उन्हें पता चलता है कि बंगाल में भी कुछ ऐसा ही हाल है। इस तरह की सिचुएशन को देखकर माउंटबेटन को समझ में आ गया था कि, जल्द से जल्द कोई कदम उठाना पड़ेगा, वरना अगर गृह युद्ध छिड़ गया तो कुछ नहीं हो पाएगा।
भारत बटवारे को लेकर क्या था माउंटबेटन का प्लान ?
माउंटबेटन शिमला चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार किया हुआ प्लान जिसे वो दिल्ली में जाकर सबके सामने बताने वाले थे उसे उन्होंने शिमला में ही नेहरू जी को दिखा दिया, नेहरू जी ने पूरे प्लान को रात भर अच्छी तरह से स्टडी किया, जिसमें लिखी एक बात नेहरू को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई, जिसके मुताबिक ये बताया जा रहा था कि हिंदू और मुसलमान चाहे तो दोनों मिलकर इस प्रांत के किसी भी क्षेत्र में अपना एक अलग देश बना सकते हैं। नेहरू माउंटबेटन के टेबल पर इस पूरे प्लान को फेंकते हुए कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा कांग्रेस इसके लिए कभी भी राजी नहीं होगा क्योंकि ऐसा करने से देश कई टुकड़ों में बट सकता है, जब नेहरू ने ये बात कही तो माउंटबेटन को भी ये प्लान अच्छा नहीं लगा और फिर ये प्लान रद्द किया गया।
माउंटबेटन का प्लान तो रद्द हो चुका था जिसे वो पिछले 6 महीने से बना रहे थे और अब उनके पास ट्रांसफर ऑफ पावर को लेकर कोई भी प्लान नहीं था, ऊपर से देश में हिंदू मुस्लिम दंगे बढ़ते जा रहे थे। इस समस्या से निपटने के लिए माउंटबेटन को अपने राजनीतिक गुरु V.P Menon की याद आती है, जिनके पास जाकर माउंटबेटन अपनी सारी प्रॉब्लम्स बताते हैं, इसके बाद V.P Menon इन्हें Dominion Status की सलाह देते हैं यानी कि भारत और पाकिस्तान दो देश बना दिए जाएंगे और सभी रियासतों को ये हक होगा कि वो जिस देश को चुनना चाहें अपने हिसाब से चुन सकते हैं, माउंटबेटन को यह प्लान बहुत पसंद आया और फिर इसी के हिसाब से प्रोफार्मा तैयार किया गया जिसे आज “माउंटबेटन प्लान” के नाम से जाना जाता है।
क्यों कांग्रेस के सभी लीडर्स भारत पाकिस्तान बंटवारे के विरोध में थे ?
जब ये प्लान सबके सामने रखा गया तो कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सिख नेता सभी इसके लिए राजी हो गए सभी की सहमति के बाद इस प्लान को ब्रिटिश संसद में अप्रूवल के लिए भेज दिया गया, लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि, जब कांग्रेस के सभी लीडर्स बंटवारे के विरोध में थे तो उन्होंने इस प्लान को लेकर सहमति क्यों जताई? असल में इसकी सबसे बड़ी वजह थी देश में चल रहे दंगे-फसाद जो कभी भी गृह युद्ध का रूप ले सकते थे, उसी से बचने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने बंटवारे के लिए सहमति दे दी। वरना अगर देश में गृह युद्ध छिड़ जाता तो देश कई हिस्सों में बट जाता और ये चीज कांग्रेस के नेता बिल्कुल भी नहीं चाहते थे।
हालांकि इस प्लान के मुताबिक भारत के भी फायदे हो रहे थे जैसे कि, तब तक भारत का कोई संविधान नहीं था, संविधान बनने तक भारत को सिविल सर्वेंट्स और मिलट्री ऑफीसर्स की जरूरत थी और Dominion Status के तहत भारत ब्रिटेन की सभी सर्विसेज को इस्तेमाल कर सकता था, क्योंकि एकाएक सब कुछ Establish करना आसान नहीं था, संविधान बनने में समय लगता है और उस दौरान भारत के पास कुछ भी नहीं था इसीलिए भारत ने अंग्रेजों की मदद ली।
और फिर तो आप जानते ही हैं कि Dominion Status के पास होते ही 15 अगस्त 1947 को भारत में इंडिपेंडेंस एक्ट इंप्लीमेंट हो जाता है, और इसी के तहत भारत को आजादी मिलती है और जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बनते हैं। Vi ceroy के पद को हटाते हुए माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाया गया ऐसे में इसे लेकर भी कई सारे सवाल उठते हैं कि, जब हम आजाद हो गए थे तो माउंटबेट को गवर्नर जनरल क्यों बनाया गया?…. तो दोस्तों इसकी सबसे बड़ी वजह थी Dominion Status क्योंकि इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट के तहत पावर का ट्रांसफर तो जल्दी हो गया लेकिन Dominion Status अभी भी कायम था, जिसके मुताबिक ब्रिटेन के राजा का एक प्रतिनिधि यानी कि गवर्नर जनरल वह सारी जिम्मेदारियां संभालने वाला था, जो आज के समय में भारत के राष्ट्रपति संभालते हैं।
यह पद लॉर्ड माउंटबेटन को इसलिए दिया गया क्योंकि नेहरू जी और सरदार वल्लभभाई पटेल यह चाहते थे कि माउंटबेटन उनकी मदद करें क्योंकि राजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल करना इतना आसान नहीं था।
पहले भारतीय गवर्नर कौन बने थे ?
दोस्तों माउंटबेटन 21 जून 1948 तक गवर्नर जनरल के पद पर रहे और उनके रीजाइन देने के बाद श्री राजगोपालाचारी पहले भारतीय थे जो गवर्नर जनरल चुने गए और जब तक भारत का अपना संविधान बनकर तैयार नहीं हुआ तब तक भारत ब्रिटिश गवर्नर का Dominion बना रहा। लेकिन जैसे ही 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट को रद्द कर दिया गया, जिसके साथ Dominion Status का सिस्टम भी खत्म हो गया था।
अब यहां सवाल ये खड़ा होता है कि, जब भारत को इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट के तहत आजादी मिली तो क्या कभी ब्रिटिश संसद इस एक्ट को रद्द करके भारत से आजादी वापस ले सकती है?….. तो दोस्तों! इसका इंतजाम भीमराव अंबेडकर जी ने पहले ही कर दिया था, जिन्होंने भारतीय संविधान को इस तरह बनाया ताकि, उसका इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट से कोई रिश्ता ना रहे और भारत का संविधान भारतीय नागरिकों के हिसाब से चले ना की ब्रिटिश गवर्नमेंट के, और यह चीज आपको भारतीय संविधान के आर्टिकल 395 में देखने को मिल जाएगी जिसमें भारत के संविधान को Constitutional Autochthony हासिल हुई और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट अमान्य हो गया।
इसलिए अब ब्रिटिश गवर्नमेंट लाख हाथ पैर पटक ले वह कभी भी भारत पर हुकूमत नहीं कर सकती, अगर उसे ऐसा करना है, तो उसके लिए जंग लड़नी पड़ेगी और अब ब्रिटिश गवर्नमेंट के अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि वो भारत को आंख उठा कर भी देख सके, जंग लड़ना तो बहुत दूर की बात है।
दोस्तों उम्मीद है आपको सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे, बाकी इसी तरह की रिपोर्ट पढ़ने के लिए आप www.khabardekh.com Visit करना ना भूलें, धन्यवाद।