Farmers Protest किसानों की मांगे क्या हैं | 16 फरवरी को भारत बंद | किसान आंदोलन

Farmers Protest: किसानों की मांगे क्या हैं | 16 फरवरी को भारत बंद | किसान आंदोलन

2024 चुनाव से पहले शुरू हो गया हैं किसान आंदोलन भारत मे ऐसे तो बहुत सारे आंदोलन होते रहते हैं। परंतु ये आंदोलन मुख्ये आन्दोलों मे से हैं । क्यो की किसानों को भारत मे अनदेवता माना गया हैं। ओर अगर अनदेवता ही देश मे खुश नहीं हो तो ये बहुत अजीब ओर शर्म की  बाते हैं। खैर अब ये जानते हैं की आखिर क्यो हो रहा हैं 2024 ये किसान आंदोलन।

खबरों की माने तो किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने एक न्यूज़ पत्रिका से कहा कि पिछले आंदोलन के समय केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का वादा किया था,  ओर वापस भी लिया। लेकिन उसके साथ-साथ एमएसपी पर कमेटी गठित कर जल्द फैसला लेने का वादा किया था। लेकिन  आंदोलन को समाप्त हुए दो साल का समय हो चुका हैं, लेकिन सरकार ने अपना यह वादा अभी तक पूरा नही किया हैं।

इस लिए किसानों ने एक बार फिर केंद्र सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बीते दिन 12 फरवरी 2024 को चंडीगढ़ मे 12 सूत्रीय मांगों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 किसान संगठन एकजुट हुए व कुछ केंद्रीय मंत्रियों से किसानो की मांगों को लेकर बातचीत की। परंतु कोई निष्कर्ष कुछ न निकला। किसानो ने 16 फरवरी को भारत बंद का एलान किया है। किसानो की मांगें पूरी न होने पर एक बार फिर दिल्ली के साथ-साथ देश के अलग-अलग स्थानों पर राष्ट्रीय राजमार्गों को बंद करने की तैयारी है।

किसानों की ऐसी कौन सी मांगे हैं जो सरकार पूरी नहीं कर रही रही है ?

तो आइये अब जानते हैं की आखिर किसानों की मांगें क्या हैं, और क्या उन्हें पूरा किया जा सकता है? इस  मामले से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने एक न्यूज़ पेपर को बताया कि किसानों की मांगों में कई मांगें ऐसी हैं, जिन्हें जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए। जैसे की न्यूनतम समर्थन मूल्य और भूमि अधिग्रहण पर किसानों की शंकाओं का जल्द समाधान होना चाहिए। लेकिन उनकी कई मांगें ऐसी भी हैं, जिसे पूरा करना लगभग मुमकिन नहीं है। माना जा रहा है कि किसानो की मांगों में इन मुद्दों को शामिल कर वार्ता को हर हाल में विफल होने का रास्ता तैयार कर दिया गया है। वही लखीमपुर हिंसा में कुछ बड़े नेताओं को जबरदस्ती दोषी ठहराने की मांग ऐसी ही है, जिसे केंद्र सरकार किसी भी हालत में स्वीकार नहीं कर सकती। ऐसे में वार्ता असफल होगी और केंद्र-किसानों दोनों की समस्या बढ़ेगी।

ऐसे में इस मामले का क्या हल निकल सकता है? ये तो पता नही किसी को लेकिन यह भी तय है कि यदि किसान और केंद्र सरकार सही सोच के साथ एक बार बातचीत करेने बैठे तो हर समस्या का समाधान निकल सकता है। इससे किसानों-श्रमिकों को मजबूती दी जा सकती है ओर इन सभी मुद्दो का समाधान भी निकाला जा सकता हैं।

किसानों की मांगे क्या हैं ? किसान आंदोलन में क्या चाहते हैं किसान?

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की मांग

किसानों की सबसे बड़ी मांग यह है कि उन्हें सभी फसलों पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिया जाए। वही केंद्र सरकार का दावा है कि वह प्रमुख फसलों को उत्पादन मूल्य पर 50 फीसदी का लाभ पहले से ही  देते हुए फसलों की खरीद कर रही है। परंतु किसान भूमि का किराया शामिल करते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कर रहे हैं। कृषि मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह से एमएसपी नहीं दी जा सकती।

  • कर्जमाफी

कर्जमाफी को लेकर किसानों का कहना है कि यदि उद्योगपतियों के करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया जा सकता है। तो किसानों का क्यों नहीं? वही केंद्र सरकार का कहना है कि पूरे देश के किसानों का कुल कर्ज बहुत ज्यादा है। जिससे पूरे कर्ज की माफी करना संभव नहीं है। इससे गलत परंपरा भी देश मे पैदा होगी और सरकार ऐसा नहीं चाहती। ओर अगर सरकार ऐसा कर देती हैं तो  किसान कर्ज लेकर नहीं चुकाएंगे और देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में फंस जाएगी। बीच का रास्ता अपनाकर इस मामले का हल निकाला जा सकता है। किसानों के कर्ज का कुछ हिस्सा माफ किया जा सकता है व कुछ को आसान किस्तों में वापस करने का विकल्प भी दिया जा सकता है। परंतु पूरा कर्ज माफ नहीं किया जा सकता।

  • किसान भूमि अधिग्रहण कानून

किसानो कि मांग हैं कि किसान भूमि अधिग्रहण कानून बदलकर भूमि लेने के लिए किसानों की सहमति अनिवार्य करे और बाजार मूल्य से चार गुना मूल्य निश्चित करे। इस मामले पर कहा जा सकता हैं की सरकार ओर किसानो दोनों पक्षों में सहमति बन सकती है। एक क्षेत्र के 80-90 फीसदी किसानों के सहमत होने पर सबकी भूमि बाजार दर से अधिक मूल्य पर अधिग्रहित करने की राह बनाई जा सकती है।

  • लखीमपुर खीरी घटना

किसानो की यह मांग हैं की किसान लखीमपुर घटना में कथित तौर पर शामिल कुछ नेताओं की गिरफ्तारी और उन्हे उचित सजा दी जाये। इसमें कुछ ऐसे लोगों के नाम भी हैं, जो न तो घटनास्थल पर थे और न ही उनकी कोई भागीदारी सामने आई है। किसानों की मांग ये भी हैं की किसानों पर दर्ज सभी मुकदमे वापस ले और आंदोलन में मृत किसानों के परिवार में एक-एक को सरकारी नौकरी और मुआवजा दिए जाने । केंद्र सरकार ने वैसे इसमें से कुछ मांगों को पूरा करने का वादा किया था। माना जा रहा है कि इस पर भी बहुत परेशानी नहीं होगी इसका समाधान निकाल जाएगा।

  • खेती को मनरेगा से जोड़ें

किसान लिखित में चाहता हैं कि किसान खेती को मनरेगा से जोड़ने, उन्हें न्यूनतम 700 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी देने और साल में 200 रुपये  प्रति दिन न्यूनतम रोजगार दे। कृषि विशेषज्ञों का कहना है। कि जब खेती में 300-400 रुपये में पूरे दिन के लिए श्रमिक उपलब्ध होते हैं तो 700 रुपये प्रतिदिन की मांग उचित नहीं है। मनरेगा में भी पूरे 100 दिन का काम नहीं मांगा जा रहा है, ऐसे में 200 दिन निश्चित करने की बात भी उचित नहीं है। कई राज्य मनरेगा के अपने पूरे फंड का भी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में किसानों की मांगें मानरेगा से जोड़ने कि वास्तविकता के धरातल पर नहीं हैं।

  • राज्यों की भूमिका बढ़ाएं

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, किसानों को इसे समझने की आवश्यकता है। मनरेगा के द्वारा कृषि कार्यों को जोड़ने से अन्य क्षेत्रों में मनरेगा श्रमिकों की कमी हो सकती है। हालांकि, इसे कृषि से जुड़ने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकती है। इस प्रक्रिया में, राज्य सरकारों को भूमिका बढ़ाने के साथ-साथ किसानों को आर्थिक लाभ प्रदान करने और केंद्र सरकार पर अतिरिक्त बोझ से बचने का मार्ग निकाला जा सकता है।

  • किसानोंमजदूरों/श्रमिकों को पेंशन

किसानो की प्रमुख मांगो मे से एक ये भी मांग है कि किसानों-खेतिहर मजदूरों/ श्रमिकों को सरकार पेंशन दे। जब कि केंद्र सरकार पहले से ही 8.12 करोड़ किसानों को प्रतिवर्ष 6000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है। वैसे पेंशन के मुद्दे पर किसान ओर सरकार बातचीत कर सकती है कि पेंशन  की राशि उचित दर हो जिसमे दोनों कि सहमति बन जाए। लेकिन किसानों-मजदूरों को केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण सुविधायुक्त इलाज, उनके बच्चों को शिक्षा देकर उनकी ज्यादा बड़ी समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यदि किसानों को बेहतर सुविधाएं देकर उनका जीवन आसान बनाया जा सके, उनके बच्चों को कौशल प्रशिक्षण देकर बेहतर शिक्षित युवा बनाया जा सके तो इससे किसानों के साथ-साथ देश की कई बड़ी समस्याओं का भी समाधान किया जा सकता है। परंतु इसमे सरकार ओर किसान के साथ- साथ जनता कि भी सहमति अहम भिमिका निभाएगी।

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